लाला हमारे मियाँजान के भी दोस्त थे और हमारे भी। अब आप सोचेंगे, एक ही दोस्ती दो जनरेशन को कैसे नसीब हो गई? असल में, लाला थे ही ऐसे। हर उम्र का पासपोर्ट उनके पास था। बच्चों में वो ‘क़ुल्फ़ी चचा’, नौजवानों में ‘मोहब्बत का मसीहा’, और बुज़ुर्गों में ‘मौलाना सैकड़ों रंजों का हल’ कहलाते थे।
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