दुनिया की पहली गाली कौन सी थी? यह सवाल जितना भारी लगता है, उतना ही हल्का भी हो सकता है, क्योंकि गालियों का इतिहास संभवतः उतना ही पुराना है जितना कि इंसान का, यानी तब से जब से कोई इंसान ने दूसरे इंसान को “तुम” कहने की हिम्मत दिखाई होगी। कोई ये कह सकता है कि पहले पाषाण युग में जब एक इंसान ने दूसरे के हाथ से मांस का टुकड़ा छीना होगा, तभी से गालियों की शुरुआत हो गई होगी।
अब इसे यूं समझिए कि इंसान के मन में ‘अच्छे शब्द’ जितनी तेजी से आए होंगे, ‘गंदे शब्द’ उससे दुगनी तेजी से आए होंगे। आखिरकार, ज़ुबान पर लगाम लगाने की कला तो सदियों बाद आई। तो ऐसा मान लीजिए कि आदिमानव ने किसी गुफा में बैठकर पहला शब्द बोला और दूसरा शब्द सीधा गाली ही निकला होगा। हालाँकि गुफ़ा-चित्रों से ऐसा कोई चित्र अभी तक सामने नहीं आया जिसे चित्रित गाली या गाली-चित्र कहा जा सके। इस पर अभी गहन अध्ययन किया जाना बाक़ी है।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि दुनिया की पहली गाली अनायास ही तब निकल गई होगी जब कोई आदिमानव अपने साथी से कोई बात मनवाना चाह रहा होगा और उसने विरोध कर दिया होगा। उस क्षण में, बिना किसी पूर्व चेतावनी के, उसने एक नए शब्द का अविष्कार कर डाला होगा, जिसे हम आज के समय में गाली कहते हैं।
अब, समस्या यह है कि उस गाली का स्वरूप क्या था? वह “@!€&#%,” “}#^*€=,” या कुछ और हो सकता है, परंतु इतिहास में तो इसका कोई प्रमाण नहीं है। तो हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं कि वो आदिमानव कैसे अपनी गुफा की दीवार पर गुस्से में हाथ मारकर चीखा होगा—“हट दूर हो रे…” और बाकी का हिस्सा ‘इतिहास’ में खो गया। कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि वह गाली ‘पहले पत्थर’ पर ही गुदवायी गई थी, लेकिन वो पत्थर लुप्त हो चुका है।
संभव है कि पहले पाषाण युग के लोग बड़े शांत स्वभाव के थे, लेकिन जैसे-जैसे उन्होंने खेती करनी सीखी, जीने के साधन जुटाए और संसाधनों पर हक़ जताना सीखा, वैसे-वैसे गालियों का ‘विकास’ भी हुआ। ज़रा सोचिए, जब एक आदिमानव ने दूसरे के खेत में जानवर चराते देखे होंगे, तब बिना किसी जटिल भाषाई कौशल के उसने सीधा अपने ही तरीके से “तू क्या समझता है अपने आपको?” जैसी पहली गाली दे मारी होगी। खेतीबाड़ी की शुरुआत के बाद ही “तू किस खेत की मूली है” नाम की गाली ईज़ाद हुई होगी।
अब ये भी एक शोध का विषय है कि क्या गालियाँ पहले दोस्तों को दी जाती थीं या दुश्मनों को? क्योंकि यह एक स्थापित सत्य है कि गालियाँ भी सबसे पहले अपने सबसे करीबी से ही दी जाती हैं, भाईचारे की मिसाल के तौर पर। और फिर उसी गाली को प्यार का प्रतीक मानकर समाज में स्वीकार कर लिया गया। अब ज़रा सोचिए, दुनिया का पहला गाली देने वाला शायद सिर्फ़ अपने दोस्त को ये समझाने की कोशिश कर रहा था कि “भाई, मेरा प्यार बस थोड़ा रफ़ तरीके से प्रकट होता है!”
इतिहासकार इस बात पर भी बहस कर सकते हैं कि पहली गाली किसी तानाशाह या राजा के खिलाफ़ बोली गई होगी, क्योंकि जैसे ही कोई व्यक्ति सत्ता में आता है, उसके विरोध में सबसे पहले गालियों की ही श्रृंखला निकलती है। हड़प्पा या मोहनजोदड़ो में कहीं किसी किसान ने अपने बादशाह के लिए एक ‘प्यारी सी गाली’ निकाल दी होगी, जो आज तक हमें नहीं मिली। मिस्र के फ़िराउन, राजकुमार, राजकुमारियाँ, आम लोग, कैसी गालियाँ देते होंगे? मिस्री अभिलेख इस बारे में कुछ ख़ास नहीं बताते।
तो गाली का इतिहास ढूँढने में हम सफल भले न हों, लेकिन ये तय है कि गाली देना हमारे समाज का एक अभिन्न हिस्सा है। शायद दुनिया की पहली गाली का पता नहीं लग सकता, पर इतना जरूर कह सकते हैं कि इंसान ने गाली देना पहले सीखा, और सभ्यता बाद में आई।
आखिरकार, गाली के बिना दुनिया कितनी बेजान होती, और किसी दोस्त की मीठी गाली सुनने का जो सुख है, वो शायद आदिमानव को भी महसूस हुआ होगा।
बहरहाल हम दुनिया की पहली गाली की तलाश में अपना पूरा ज़ोर लगाते रहेंगे। कभी न कभी तो कामयाबी ज़रूर मिलेगी।
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