top of page
Search

नज़्म




दिल शाद, होंठ गुनगुनाते हैं

चाहत-ए-वस्ल की चमक लिए आँखों में

मैं हर साँस में लेता हूँ उस का नाम

उस ने वा'दा किया है आने का

तह कर के ख़यालों को

रात की चादर लपेटी

सुबह की खिड़की खोली

मुक़ाम-ए-वस्ल उस के आने के इंतिज़ार में

वक़्त पल पल घड़ी घड़ी बीता

मगर न वो आई न उस की ख़बर

शाम हुई लौट आया

न कोई ख़त न कोई संदेस

बरसों गुज़रे लेकिन आज भी अकसर

हौले से सर को झुका कर

दिल से अपने पूछ लिया करता हूँ

उस ने वा'दा किया था आने का

वो आई क्यों नही?

15 views0 comments

Recent Posts

See All

نظم

bottom of page