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समाजशास्त्र के नए प्रश्नपत्र —

चोली के पीछे क्या है? और, किस कलर की चड्डी पहने हो?


सवाल पूछने का सिलसिला उतना ही पुराना है जितना खुद इंसान। मगर इंसान ने कुछ सवाल ऐसे भी बनाए हैं जिनके जवाब देना तो दूर, सुनते ही लोग हंसी में लोटपोट हो जाते हैं। अब “चोली के पीछे क्या है?” जैसे सवाल को ही ले लीजिए। ये सवाल नब्बे के दशक में उठाया गया, और तब से यह समाजशास्त्रियों के लिए एक पहेली बना हुआ है। गीतकार ने एक मासूम सा सवाल किया था, मगर उसके पीछे छिपी व्यंग्यात्मक गहराई को समझने में हम आज भी असफल हैं।


महिलाएँ समकालीन समाज में अपनी जगह पाने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं।

इसका जवाब देने में समाज असहज क्यों हो गया? क्या यह सिर्फ कपड़ों का मामला था, या इसके पीछे समाज के नैतिक सिद्धांतों का कोई रहस्य था? इस सवाल का जवाब ढूंढते-ढूंढते समाज ने इसे अनकहा छोड़ दिया। यह सवाल दरअसल उस पितृसत्तात्मक सोच का पर्दाफाश करता है, जो कपड़ों के पीछे की दुनिया को रहस्यमय और ‘तथाकथित वर्जित’ मानती है।

अब आइए “किस कलर की चड्डी पहने हो?” पर


यह सवाल जैसे ही सोशल मीडिया के युग में आया, मानो पूरी पुरुष जाति को सांप सूंघ गया। सवाल पूछने वाली महिला की मासूमियत पर तो कोई संदेह नहीं, लेकिन पुरुषों की घबराहट ने इस सवाल को ऐतिहासिक बना दिया। समाज ने इसे ‘फेमिनिज़्म का नया हथियार’ घोषित कर दिया। लोग इसे मजाक मानते रहे, लेकिन असल में यह सवाल व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पारदर्शिता का प्रतीक बन गया।


परंतु बात यहीं तक रहती तो ठीक था। बात इस से आगे बढ़ जाती है जब वह स्त्री अत्यंत मादक स्वर में कहती है, “अब से आप को चड्डी मैं ही पहनाऊँगी”। कोई भी पुरुष इसे संभवतः कभी स्वीकार नहीं करेगा, सबके सामने। अकेले में तो वह…. आप स्वयं समझदार हैं।


“चड्डी” का इतिहास खँगालने पर पता चलता है कि यह कपड़ा न केवल सभ्यता का हिस्सा रहा है, बल्कि कई समाजों में शक्ति और पहचान का भी प्रतीक रहा है। उदाहरण के लिए, सुपरमैन की लाल चड्डी। यह केवल एक कपड़ा नहीं, बल्कि शक्ति, साहस और ‘कपड़ों पर से ध्यान हटाने’ का प्रतीक थी। यह स्त्री कभी भी सुपरमैन से ये प्रश्न पूछने का साहस नहीं कर सकती। वह तो कुछ छुपा ही नहीं रहा है। वह अपने अंतर्वस्त्र यानि चड्डी को सबसे उपर पहनता है। कुछ भी नहीं छुपाता।

समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से विश्लेषण


इन सवालों को सिर्फ मजाक समझना, असल में समाज की गहराइयों में छिपे सवालों को अनदेखा करना है।

  1. “चोली के पीछे क्या है?” यह सवाल सिर्फ एक कपड़े के पीछे का नहीं, बल्कि उन असंख्य परतों का प्रतीक है, जो  समाज ने महिलाओं पर लादी हैं।

  2. “किस कलर की चड्डी पहने हो?” यह सवाल व्यक्तिगत अधिकारों और साहस का एक नया अध्याय खोलता है।


पुरातत्व और विज्ञान का योगदान


ऐसा माना जाता है कि पहली चड्डी प्राचीन मिस्र में बनाई गई थी, लेकिन उसका रंग क्या था, यह इतिहास भी नहीं जानता। हालांकि, रंगों का समाजशास्त्र भी गहरा है। लाल चड्डी शक्ति का प्रतीक है, तो काली चड्डी गुप्तता का। गुलाबी चड्डी मासूमियत दिखाती है, तो पीली चड्डी शायद आत्मनिर्भरता।


सवालों का महत्व


दरअसल, ये सवाल कपड़ों के पीछे के समाजशास्त्र और मानव मनोविज्ञान का अध्ययन करने का निमंत्रण हैं।

  • जब कोई पूछता है “चोली के पीछे क्या है?”, तो वह वस्त्र और शरीर के बीच के संबंधों पर सवाल उठाता है।

  • और जब कोई पूछता है “किस कलर की चड्डी पहने हो?”, तो वह सामाजिक अपेक्षाओं और व्यक्तिगत पसंद के बीच  के द्वंद्व को उजागर करता है।


सारांश में…


इन सवालों को यूँ ही नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं। ये वो सवाल हैं जो समाज को हँसाते भी हैं और उसकी परतें भी खोलते हैं।

“चोली के पीछे क्या है?” एक युग का प्रतिनिधित्व करता है, और “किस कलर की चड्डी पहने हो?” एक नए युग का।

इनके जवाब देने का समय आ गया है। समाजशास्त्री, पुरातत्वविद्, और इतिहासकारों को मिलकर इस शोध पर काम करना चाहिए। आखिरकार, यह हमारी सभ्यता, संस्कृति, और चड्डी के रंग का सवाल है।


तो आइए जब तक हम इन प्रश्नों के जवाब नहीं पा लेते तब तक मिलकर इस गीत को गुनगुनाते हैं।

“जंगल जंगल बात चली है पता चला है,

चड्डी पहन के फूल खिला है,

फूल खिला है।”


विनम्र चेतावनी: ये आई ए एस में पूछे जाने वाले सवाल नहीं हैं।


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